बिंदु बसैर
🩸 "बिंदु बसैर: सात भाइयों का श्राप और आत्मा की वापसी"
❝ क्या आपने कभी किसी बहन की आत्मा को जिंदा लौटते देखा है?
क्या आपने सुना है उस काली रात की चीखें... जब सात भाइयों ने अपनी ही मासूम बहन को जिंदा काटकर खा लिया था?
अब वो आत्मा लौट चुकी है... काली, राक्षसी और रक्त की प्यासी।
हर रात, कोई न कोई गायब हो रहा है।
मिट्टी से बदबू आती है...
छतों से खून टपकता है...
और मंदिर उल्टे लटक चुके हैं।
---बिंदु बसैर
इस कहानी में है:
☠️ ब्लैक मैजिक (काला जादू)
🩸 रक्तरंजित बलिदान
👁 आत्मा की वापसी और दानव में बदलती बहन
🕯 श्रापित गांव और तंत्र-मंत्र की अंतिम लड़ाई
"बिंदु बसैर" कोई कहानी नहीं… यह एक श्राप है जो आज भी ज़िंदा है…
अगर आप साहसी हैं, तो इस डरावनी यात्रा पर चलिए… लेकिन याद रखिए, शुरू करना आसान है... लौटना नहीं।
---बिंदु बसैर
🧨 अगर आप डरते नहीं हैं तो –
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---बिंदु बसैर
❗ Warning: इस वीडियो/पोस्ट को रात में अकेले ना देखें…
क्योंकि बिंदु की आत्मा अब ऑनलाइन भी भटक रही है… और वो अगले शरीर की तलाश में है।
"बिंदु बसैर – काली आत्मा का पुनर्जागरण"
🩸 भाग 1: सात भाइयों का पाप और बिंदु का अंतहीन श्राप
🌑 प्रस्तावना: झारखंड का श्रापित गांव
झारखंड के रांची जिले के पास एक छोटा-सा गांव था – ठाकुरगाँव, जहाँ आदिवासी संस्कृति की परंपराएं सदियों से चली आ रही थीं। इस गांव के बाहर dense जंगलों में बसा एक परिवार था – सात भाई और उनकी इकलौती बहन – बिंदु।
बिंदु दिव्य गुणों से युक्त थी। वो हर पौधे से बात कर सकती थी, उसकी सांसों से फूल खिल जाते थे और उसकी आँखों में कोई झांके तो अपनी आत्मा देख लेता। पर गाँव के बुजुर्गों का मानना था कि बिंदु "महाकाली की अंशज आत्मा" थी।
गाँव के तांत्रिक – भैरवनाथ ने भविष्यवाणी की थी:
“जिस दिन बिंदु 16 वर्ष की होगी, उस दिन उसका रक्त ‘कालतल’ की आत्मा को जगा देगा… और ये भूमि नरक बन जाएगी।”
भाइयों ने तांत्रिक की बात को सुना... और फिर...
⚔️ बलिदान या पाप?
एक रात... अमावस्या की काली रात...
जब गांव में हर घर में दीपक बुझ चुके थे और जंगल की हवाएं रो रही थीं, सातों भाई – भीमा, गोरख, चेतन, बबलू, सुबोध, राघव और कार्तिक – बिंदु को उठाकर एक गुफा में ले गए।
बिंदु रोती रही, “भैया... मैंने क्या किया? मुझे क्यों बांध रहे हो?”
पर किसी भाई ने जवाब नहीं दिया।
तांत्रिक भैरवनाथ वहाँ पहले से बैठा था... अग्नि जल रही थी... और एक काला तांत्रिक यंत्र बना हुआ था।
“अगर बिंदु को जिंदा काटकर उसका रक्त कालतल की मूर्ति पर चढ़ाया जाए, तो घर की दरिद्रता मिटेगी और भाइयों को अमरत्व मिलेगा।”
भीमा ने पहला वार किया... बबलू ने दिल निकाला... चेतन ने आंखें...
बिंदु की चीखों से पहाड़ हिल उठे।
उसका अंतिम वाक्य था –
“तुम सबने मेरी आत्मा को जिंदा जला दिया है... अब मेरी छाया, मेरी आत्मा, तुम्हें और तुम्हारी संतानों को खा जाएगी... मैं कभी मुक्त नहीं होऊंगी... कभी नहीं…”
🩸 श्राप का पहला असर
गांव की मिट्टी काली हो गई... अगले ही दिन भैरवनाथ की आंखें बाहर निकल आईं... और वह दीवारों से टकराकर मारा गया।
रात में सातों भाइयों के घरों से अजीब सी दुर्गंध आने लगी।
एक भाई – राघव – रात में अपनी छाया से ही लड़ता-लड़ता पागल हो गया।
जब गांववालों ने उस गुफा में झाँका... तो बिंदु का शव नहीं था।
बस दीवारों पर रक्त से लिखा था:
“मैं वापस आऊंगी... और तब तुमसे तुम्हारा नाम, शरीर, आत्मा – सब लूंगी...”
🔥 अब वो आत्मा थी... पर भूखी थी...
बिंदु की आत्मा जंगल में नहीं, अपने भाइयों की परछाइयों में जीने लगी।
जब कोई भाई पानी पीता, तो उस कटोरे में बिंदु की आँखें दिखतीं।
जब कोई सोता, तो उसकी नींद में बिंदु कहती –
“याद है... मेरी आँतें कैसे निकाली थी?”
💀 अंत – भाग 1 का
तीन महीने में चार भाई रह गए –
-
सुबोध – अपनी पत्नी का मांस चबा रहा था, जब गांववालों ने उसे मारा।
-
बबलू – रात में खुद को चीरकर "मैं बिंदु हूं" चिल्लाता रहा, और जलकर मर गया।
अब तीन बचे थे – गोरख, भीमा और कार्तिक।
पर बिंदु अब किसी छाया में नहीं, अपने असली शरीर में लौट आई थी…
काले जादू और उस यंत्र के जरिए उसने “कालमाया” को जगा लिया था – जो स्त्री की आत्मा को काली राक्षसी में बदल देता है।
और तब… शुरू हुआ "बिंदु का रक्तपिपासु पुनर्जन्म"
🔔 आगे पढ़िए:
🕯️ भाग 2: बिंदु की आत्मा का पुनर्जन्म और अंतिम वध
अब आत्मा नहीं... राक्षसी बन चुकी बिंदु कैसे भाइयों की संतानों, पूरे गांव, और स्वयं तांत्रिक कुलों का विनाश करती है?
क्या कोई उसे रोक पाएगा?
और क्या वो सिर्फ बदला ले रही है... या कोई बड़ा श्राप उसे चला रहा है?
👇 अभी पढ़िए भाग 2...
🩸 भाग 2: बिंदु की आत्मा का पुनर्जन्म और अंतिम वध
🌘 13 साल बाद: गांव का नरक में बदल जाना
ठाकुरगांव अब पहले जैसा नहीं था।
हर साल गांव में एक बच्चा बिना वजह गायब हो जाता, किसी के घर की छत से खून टपकता, किसी की परछाईं उससे बातें करती।
लोग डरते थे शाम होते ही घरों में दुबक जाते।
एक रात अचानक गांव की नदी लाल हो गई।
उस दिन एक और खबर फैली —
"गोरख का बेटा नदी में नहा रहा था... अचानक पानी खौल उठा और वो अंदर खिंच गया… बस खून बचा..."
भीमा का पोता – अर्जुन – रात में सोते हुए चिल्लाया,
“दादी! दादी! बिंदु दीदी आई थीं... उनके पास सिर नहीं था... बस खून से भरी आँखें थीं…”
गांव में कोई नहीं जानता था कि बिंदु अब वापस आ चुकी थी... पर इंसान बनकर नहीं…
वो कालमाया बन चुकी थी –
एक ऐसी राक्षसी जो अपने शरीर में तीन आत्माएं रखती थी –
-
बिंदु की प्यारी बहन वाली आत्मा
-
बलिदान की दर्दनाक छाया
-
और तीसरी – कालतल की नरभक्षी राक्षसी आत्मा
🪷 पुनर्जन्म का रक्त अनुष्ठान
बिंदु की आत्मा ने तांत्रिक भैरवनाथ के जले अवशेषों को एकत्र किया और उस काले यंत्र से खुद को पुनर्जीवित किया।
उसके लिए चाहिए था –
-
भाइयों के कुल वंशजों का रक्त,
-
भक्तों की आत्मा,
-
और रक्त से लथपथ शिव-शक्ति यंत्र।
उसने पहले कार्तिक की बेटी को अपने वश में किया – लड़की का शरीर चमकता था पर उसकी आंखें काली थीं।
उसके जरिए उसने गांव की हर युवती को यंत्र में समर्पित किया – वे सब उसकी काली सेविकाएं बन चुकी थीं।
गांव की आधी लड़कियां अब बिंदु की छाया बन चुकी थीं।
💀 सात भाइयों का अंतिम वध
अब बिंदु खुद सामने आई।
काली साड़ी, बिना आंखों का चेहरा, और घुंघराले बाल जो साँपों की तरह हिलते थे।
-
गोरख – उसके घर के भीतर बिंदु की छाया घुसी। गोरख का पूरा शरीर उल्टा हो गया, गर्दन पेट से और पैर माथे से। मरने से पहले उसने कहा – “बिंदु... क्षमा...”
-
भीमा – सबसे बड़ा और निर्दयी। बिंदु ने उसे उसी यंत्र पर लिटाकर उसका दिल चबाया और बोली – “याद है? मेरा दिल तुमने निकाला था... अब मेरी बारी है...”
-
कार्तिक – वह जंगल में भागा... पर जहां भी गया, वहां बिंदु पहले से थी। अंततः उसे काले नागों ने जिंदा निगल लिया।
🕸️ अब गांव की बारी थी…
ठाकुरगाँव की हर गली में रात को कोई स्त्री रोती... “भैया... मुझे मत मारो...”
लोगों ने घर जलाए, लेकिन बिंदु की आत्मा धुएं से बनकर बाहर निकल आई।
उसने गांव के मंदिर को उल्टा लटकाया...
पूरे गांव की औरतें खून से भरे घड़ों में डूब गईं…
मर्दों के शरीर के टुकड़े पेड़ों से लटकते रहे…
🩶 बिंदु का अंत... या आरंभ?
एकमात्र जीवित व्यक्ति था – तांत्रिक कुल का वंशज – नीलकंठ।
उसने “त्रिनेत्र मंत्र” से बिंदु को रोकने की कोशिश की…
पर बिंदु सिर्फ एक आत्मा नहीं थी –
“मैं श्राप हूं… मैं अंधकार का उत्तराधिकार हूं… मेरी हत्या मेरी मुक्ति नहीं… दुनिया का अंत है…”
नीलकंठ ने अपने प्राण देकर यंत्र को सील कर दिया…
बिंदु की आत्मा, उसके सेविकाएं और कालमाया सब उस यंत्र में कैद हो गए…
उस यंत्र को गांव के बाहर की गुफा में मिट्टी में गाड़ दिया गया।
🎬 समाप्ति… या नहीं?
आज भी ठाकुरगांव के बाहर वो गुफा मौजूद है…
हर साल कोई न कोई वहां जाता है… और लौटकर नहीं आता…
गांववालों का मानना है कि –
“अगर कोई उस मिट्टी को खोदे… तो बिंदु वापस आएगी…
और तब... न भाई बचेगा, न बहन… सिर्फ ख़ून… और श्राप…”
क्या आप तैयार हैं... उस यंत्र को छूने के लिए?
क्योंकि वो सिर्फ कहानी नहीं... अभी भी जिंदा है… 🩸💀
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