वशीकरण: बरसों से अधूरा शाप
🌙 "वशीकरण: बरसों से अधूरा शाप" 🌙
अगर आपको लगता है कि शाप, आत्मा और तंत्र विद्या सिर्फ कहानियों में होती है… तो गुनियालगांव का यह सच आपकी सोच बदल देगा।
1986–87 में, उत्तराखंड के पहाड़ों में एक पुराना पीपल का पेड़, एक अधूरा मंत्र, और एक तांत्रिक भैरवनाथ की प्यास ने 5 युवतियों और एक साधु की जान ले ली।
आज भी, बरसात की रातों में वहाँ से किसी के मंत्र फूँकने की आवाज आती है… और जिसने भी वो आवाज सुनी, उसने सपनों में लाल आँखों वाले भैरवनाथ को देखा — कहते हुए "अब तू मेरी है…".
⚠️ यह कहानी कमजोर दिल वालों के लिए नहीं है ⚠️
अगर आप हिम्मत रखते हैं, तो इस खौफनाक सफर में हमारे साथ चलिए — जहाँ हर शब्द आपको सच के और करीब ले जाएगा… और शायद… उस श्राप की छाया आपके कमरे तक पहुँच जाए।
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कहानी का नाम
"वशीकरण: बरसो से अधूरा शाप"
भाग 1 – आरंभिक छाया
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के एक छोटे-से गाँव गुनियालगांव में यह घटना घटी। गाँव पहाड़ों के बीच, बादलों से घिरा और अक्सर कोहरे में डूबा रहता था। 1986 की सर्दियों में, यहाँ एक अजीब-सी अफवाह फैलनी शुरू हुई — “पुराने पीपल के पेड़ के नीचे किसी ने तांत्रिक वशीकरण किया है।”
गाँव के बुज़ुर्ग कहते थे कि वह पीपल करीब 300 साल पुराना है और उसके नीचे कभी एक तांत्रिक, भैरवनाथ, ने मानव बलि देकर अमर प्रेम वशीकरण मंत्र साधा था। कहा जाता है, साधना अधूरी रह गई और उसकी आत्मा उसी पेड़ से बंध गई।
पहली घटना
गाँव में 19 साल की सुजाता नेगी अचानक गायब हो गई। गवाहों ने कहा, रात को वह अकेली कुएँ से पानी भरने गई थी, लेकिन सुबह उसका घड़ा टूटा मिला और कपड़े पीपल के पेड़ की जड़ों में उलझे पाए गए।
पुलिस ने खोजबीन की, लेकिन न तो कोई शव मिला, न ही कोई सुराग।
उसके बाद से, गाँव की औरतें शाम ढलते ही घर से बाहर निकलना बंद कर देतीं।
अजीब आवाज़ें और छायाएं
गाँव के लोग कहते हैं कि पीपल के पास जाने पर कान में किसी के धीमे-धीमे बोलने की आवाज आती, जैसे कोई मंत्र फूँक रहा हो — "तू मेरा है… तू सिर्फ मेरा है…".
कभी-कभी पेड़ की परछाई में एक काला आदमी दिखाई देता, लेकिन जैसे ही नज़र डालो, गायब हो जाता।
पुराना किस्सा
बुजुर्ग रतन सिंह ने बताया —
“1902 में भी यही हुआ था। तब भी तीन लड़कियां गायब हुई थीं, और लोगों ने तांत्रिक का नाम लिया था। उस समय भी उनकी लाशें नहीं मिलीं… बस, पीपल के नीचे उनकी चूड़ियां और बाल पड़े थे।”
गाँव में यह मान्यता थी कि भैरवनाथ की आत्मा किसी भी युवती को अपना बनाने के लिए उसके मन पर वशीकरण कर लेती है और उसे पेड़ में खींच ले जाती है।
दूसरी घटना
दिसंबर 1986 की ठंडी रात, 22 साल की मंजरी रावत अपने भाई को दवा देने के लिए दूसरे गाँव जा रही थी। वह रास्ता छोटा करने के लिए पीपल के पास से निकली।
अगले दिन सुबह, उसका स्कार्फ पेड़ की ऊँची शाखा पर लटका मिला, और पेड़ की जड़ों में ताज़ा खून के छींटे थे।
डर का फैलना
दो युवतियों के गायब होने के बाद, गाँव खाली होने लगा। लोग अपने घर छोड़कर नीचे कस्बे में बसने लगे। लेकिन 1987 में गाँव में एक साधु आया, जिसने दावा किया —
“यह कोई साधारण आत्मा नहीं… यह वशीकरण का अधूरा यज्ञ है। जब तक इसे पूरा न किया जाए, आत्मा और भी लोगों को ले जाएगी।”
(यहाँ पहला भाग खत्म होता है। आगे का भाग और भी बड़ा, खून-खराबे, मौतों, और असली घटना के पूरे सच के साथ होगा…)
भाग 2 – अधूरे मंत्र का खून से पूरा होना
जनवरी 1987 की एक ठंडी सुबह, गाँव में तीसरी गुमशुदगी की खबर फैली।
इस बार 17 साल की सुनैना भंडारी गायब हो गई। उसका घर पीपल से मुश्किल से 200 मीटर दूर था। रात को उसने अपनी माँ से कहा था कि उसे कोई "सपनों में बुला रहा है"। उसकी माँ ने सोचा, यह बस बुखार का असर है… लेकिन सुबह दरवाज़ा खुला मिला और उसके पैर के निशान सीधे पीपल की ओर जाते पाए गए — बीच में एक भी मोड़ नहीं।
सरकारी दखल
तीन लड़कियों के लापता होने के बाद, पिथौरागढ़ पुलिस और जिला प्रशासन गाँव पहुँचा। उस समय के थाना प्रभारी चंद्रमोहन पांडे की रिपोर्ट में लिखा गया:
"पीपल वृक्ष के पास असामान्य रूप से ठंडी हवा बह रही थी, मिट्टी में गहरे लाल रंग के दाग थे, और पेड़ की ऊँचाई के बीच में अजीब-सी धागों और नींबू-मिर्च की गांठें लटक रही थीं।"
जाँच के दौरान, पास ही एक छोटी मिट्टी की वेदी मिली — उस पर राख, चाकू, और किसी पुरानी किताब के जले हुए पन्ने बिखरे थे।
पुराने रिकॉर्ड और भैरवनाथ का सच
जिला अभिलेखागार से पता चला कि भैरवनाथ नामक तांत्रिक का ज़िक्र 1898 के एक अंग्रेज़ अफ़सर की रिपोर्ट में भी था। उस रिपोर्ट में लिखा था कि भैरवनाथ ने एक रईस की बेटी पर वशीकरण का मंत्र करने की कोशिश की थी, लेकिन गाँव वालों ने पकड़कर उसे पीपल के नीचे जिंदा जला दिया।
मरते वक्त उसने श्राप दिया था —
“हर उस बेटी को मैं ले जाऊँगा, जो मेरे पेड़ की छाया में आएगी… जब तक मेरा यज्ञ पूरा न हो, मैं अमर रहूँगा।”
खौफनाक रात – 14 फरवरी 1987
उस दिन गाँव में शिवरात्रि का मेला था। लोग मंदिर में पूजा करने गए थे। तभी अचानक, शाम 7 बजे, पीपल के पेड़ से अजीब धुँध उठने लगी।
गवाहों ने बताया कि धुँध में एक ऊँचा, काले कपड़े पहने आदमी दिखा, जिसकी आँखें अंगारे जैसी लाल थीं। उसके पीछे तीन परछाइयाँ थीं — औरतों जैसी — जो धीरे-धीरे पेड़ में समा रही थीं।
कुछ जवान लड़कों ने पास जाकर देखा, तो मिट्टी अपने आप खिसकने लगी और जड़ों के बीच से एक हड्डियों से भरी खोह दिखाई दी।
अचानक, जमीन फटने जैसी आवाज आई और भीतर से भैरवनाथ की भयानक हँसी गूँजी —
"एक और चाहिए… बस एक और…"
चौथी और पाँचवीं मौत
मेला खत्म होते ही, 21 साल की रीता बिष्ट और 18 साल की किरण रावत घर नहीं लौटीं।
दो दिन बाद, जंगल में, एक पत्थर की गुफा में उनकी लाशें मिलीं — शरीर जमे हुए, होंठ नीले, और माथे पर सिंदूर की लंबी लकीर, जैसे किसी ने शादी की रस्म पूरी की हो।
मृत्यु प्रमाणपत्र में कारण लिखा गया: "अज्ञात हृदय गति रुकना", लेकिन स्थानीय लोग कहते थे कि उनकी आत्मा भैरवनाथ ने वशीकरण करके अपने पास बाँध ली।
गाँव छोड़ना और आखिरी तंत्र विद्या
मार्च 1987 में, पूरे गुनियालगांव को खाली कर दिया गया। 42 परिवार नीचे के कस्बे गंगोलीहाट में बस गए।
लेकिन कुछ लोग वहीं रहे, जिनमें साधु हरिहर गिरी भी थे। उन्होंने दावा किया कि वे भैरवनाथ के अधूरे यज्ञ को खत्म करेंगे।
उन्होंने 21 मार्च 1987 की रात, पीपल के नीचे अग्निकुंड जलाया और महामृत्युंजय मंत्र का जाप शुरू किया।
गवाह बलवंत नेगी कहते हैं:
"मध्यरात्रि को तेज़ आँधी चली, पेड़ की जड़ें जैसे साँप की तरह हिलने लगीं। अचानक, काले धुएं में एक भयानक चेहरा उभरा, आँखों से खून टपक रहा था।"
हरिहर गिरी ने मंत्र का आखिरी चौपाई पूरी की… और तभी आग अचानक बुझ गई।
सुबह जब लोग पहुँचे, तो साधु की जली हुई देह पीपल के पास पड़ी थी — और पेड़ के नीचे की मिट्टी बिलकुल काली हो चुकी थी।
सरकारी सील और आज की स्थिति
1988 में, प्रशासन ने पीपल के चारों ओर लोहे की बाड़ लगा दी और गाँव को "असुरक्षित क्षेत्र" घोषित किया।
1986–87 में कुल 5 युवतियों की मौतें और 1 साधु की बलि इस वशीकरण घटना से जुड़ी मानी गईं।
आज भी, गुनियालगांव वीरान है। लोग कहते हैं, बरसात की रात में, पीपल के नीचे से अब भी किसी के मंत्र फूँकने की आवाज़ आती है — और अगर कोई लड़की उस आवाज़ को सुन ले, तो उसके सपनों में भैरवनाथ आकर कहता है —
"अब तू मेरी है…"
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