एक शापित कुर्सी
📌 The Wheel Chair – एक शापित कुर्सी की सबसे
🪑 कल्पना कीजिए एक ऐसी कुर्सी की...
जिस पर जो बैठता है, वह पृथ्वी से मिलते-जुलते एक अजनबी ग्रह पर पहुंच जाता है। लेकिन यह ग्रह कुछ और ही है — यहाँ के लोग नरभक्षी हैं, जो केवल पापी इंसानों का शिकार करते हैं। और इन नरभक्षियों का भी एक शिकारी है — एक पापी आत्मा जिसने जीवन में इतने अपराध किए कि उसकी आत्मा को मृत्यु ने भी स्वीकार नहीं किया।
इस कुर्सी की शुरुआत हज़ारों साल पहले मिस्र के कायरो से होती है। आज यह कुर्सी एक म्यूज़ियम में बंद थी, लेकिन कुछ लालची चोरों ने इसे चुरा लिया और शहर के सबसे खतरनाक गुंडे सिद्धार्थ बख्शी को बेच दी।
लेकिन जब सिद्धार्थ उस कुर्सी पर बैठता है, तो वह उस भयानक ग्रह पर पहुंच जाता है — जहाँ बचने का सिर्फ एक ही रास्ता है: कोई ऐसा इंसान उस कुर्सी पर बैठे जिसने जीवन में कभी पाप न किया हो।
👹 नरभक्षी,
🔥 श्रापित आत्मा,
🚪 एक पारलौकिक दरवाज़ा,
और
⛓️ पाप का भयावह मूल्य…
"The Wheel Chair" आपको एक ऐसी यात्रा पर ले जाएगी जहाँ डर, रहस्य और शाप आपकी सांसें रोक देंगे।
---एक शापित कुर्सी
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🚫 याद रखिए…
अगर आप पापी हैं, तो उस कुर्सी पर कभी मत बैठिए।
और अगर आप निर्दोष हैं…
तो शायद वही आपकी सबसे बड़ी सज़ा होगी।
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The Wheel Chair – एक श्रापित कुर्सी की कहानी
(भाग 1: शाप की वापसी)
प्रस्तावना
हजारों साल पहले, मिस्र के कायरो शहर में एक कुर्सी बनाई गई थी। लेकिन यह कोई आम कुर्सी नहीं थी। यह एक काले अबनूस की लकड़ी से बनी थी, जिस पर खून के छींटे आज भी सूखकर चिपके हैं। कहा जाता है, इसे उस पापी आत्मा के आदेश पर बनाया गया था जिसने ज़िन्दगी में इतने पाप किए कि मृत्यु भी उसे निगल न सकी। उसकी आत्मा उसी कुर्सी में कैद हो गई—एक दरवाज़ा, एक फंदा… और एक यातना।
वर्षों बीते। सभ्यताएं ढही। और वह कुर्सी एक म्यूज़ियम की गहराइयों में रखी गई, शापित, शांत... पर जीवित।
अध्याय 1: चोरी
मुंबई, वर्तमान काल।
रात के सन्नाटे में म्यूज़ियम की दीवार फांदते तीन नकाबपोश चोरों ने अंदर प्रवेश किया। उनके लिए यह बस एक डील थी—पुरानी, अजीब सी लकड़ी की व्हील चेयर को चुराकर शहर के सबसे कुख्यात अपराधी सिद्धार्थ बख्शी को बेचना।
"ये तो किसी बूढ़े राजा की लगती है," एक चोर ने फुसफुसाते हुए कहा।
दूसरे ने डरते हुए उसकी मेटल हैंडल को छुआ, तभी अचानक एक भयानक आवाज़ म्यूज़ियम में गूंज उठी—जैसे किसी ने दहाड़ मारी हो। पर कोई दिखाई न दिया।
तीनों चोर डरे, लेकिन लालच भारी पड़ा। कुर्सी को ट्रक में डाला गया... और तब कुछ टूटा।
उनमें से एक चोर की आंखों से खून बहने लगा, और उसने अपनी गर्दन काट डाली। बाकी दो डर कर भाग गए।
अध्याय 2: सिद्धार्थ की हँसी
सिद्धार्थ बख्शी। एक ऐसा नाम जिससे पुलिस भी कांपती थी। उस रात वह एक पुराने कारखाने में बैठा था जब उसे कुर्सी दिखाई गई।
“ये मुझ पर जमेगी,” उसने कहा और तुरंत उस पर बैठ गया।
...और तभी अंधेरा छा गया।
उसकी आँखों के सामने जैसे धुंध तैरने लगी और वह गिर पड़ा।
जब होश आया—तो वह वहां था।
अध्याय 3: दूसरी दुनिया
चारों ओर हरे जंगल, विशालकाय चट्टानें, नीलापन भरा आकाश, पक्षी जैसे पृथ्वी पर होते हैं, पर उनके चेहरे... इंसानों जैसे थे। और सामने जो जीव खड़े थे, वे इंसानों जैसे दिखते तो थे, पर उनकी आंखें बिलकुल काली थीं। नाखून लंबे, दांत भेड़ियों जैसे, और उनकी खाल भूरे रंग की झूलती हुई चमड़ी।
ये पृथ्वी नहीं थी।
यह पृथ्वी की परछाई थी।
वह जगह एक वैकल्पिक ग्रह थी जहाँ के लोग नरभक्षी थे—जो केवल उन्हीं इंसानों का शिकार करते थे जो पापों से भरे होते।
अध्याय 4: शिकार
सिद्धार्थ वहां अकेला था, भूखा, प्यासा, डरा। पर वह जानता था, डर उसे कमजोर बनाएगा।
रात के अंधेरे में वो छिपा रहा, लेकिन तब उसने देखा...
एक लड़की, जिसकी आंखों से आग निकल रही थी, उन नरभक्षियों को एक-एक करके मार रही थी। उसके हाथ में काली ज्वालाओं से बना एक भाला था, और जहां वह भाला जाता, वहां केवल राख बचती।
वह कोई इंसान नहीं थी। वह आत्मा थी—एक ऐसी आत्मा जिसने अपने जीवन में इतने पाप किए थे कि उसे स्वर्ग और नरक दोनों ने ठुकरा दिया। अब वह नरभक्षियों का शिकार करती थी... पर पापियों को कभी नहीं छोड़ती थी।
अध्याय 5: शर्त
एक बूढ़ा भिक्षुक सिद्धार्थ के पास आया, उसके पास एक आंख थी, और उसकी जीभ कट चुकी थी।
उसने हाथ से इशारा किया और ज़मीन पर कुछ लिखा:
“तू केवल तभी इस ग्रह से वापस जा सकता है,
जब कोई ऐसा इस कुर्सी पर बैठे जो निर्दोष हो।”
सिद्धार्थ हँस पड़ा। “इस दुनिया में निर्दोष कौन है?”
लेकिन वह नहीं जानता था—इस हँसी की कीमत उसकी आत्मा होगी।
भाग 2: पाप का मूल्य
अध्याय 6: सड़कों पर वापसी
इधर, असली दुनिया में सिद्धार्थ की बॉडी बेहोश थी। डॉक्टर बोले—कोमा है। पर उसके आदमी डरने लगे।
वह कुर्सी अब खुद चलने लगी थी। जो भी उसके पास जाता, उसके कानों में किसी और भाषा की फुसफुसाहट सुनाई देती।
सिद्धार्थ के गिरोह के दो लोग जबरन उसे होश में लाने के लिए कुर्सी पर बैठाए गए।
दोनों कभी वापस नहीं लौटे।
अध्याय 7: नई शिकार
अब वह आत्मा केवल उस ग्रह में नहीं थी। वह हर जगह महसूस की जा रही थी।
म्यूज़ियम के एक गार्ड की आँखें सफेद हो गईं और उसने दीवार पर खून से लिखा:
"जो पाप करेगा, वह इस कुर्सी का भोज बनेगा।"
अब मामला पुलिस तक पहुंचा। एक जूनियर अफसर, आदित्य, जो एकदम नया और ईमानदार था, जांच के लिए आया।
उसने कुर्सी पर हाथ रखा, तो कुर्सी शांत हो गई।
आदित्य की आंखें नीली हो गईं। पर वो गायब नहीं हुआ।
अध्याय 8: द्वंद्व
सिद्धार्थ अब भूखा, घायल और पागल होता जा रहा था। उसकी आत्मा कुर्सी में बंद हो रही थी। वह आत्मा जो नरभक्षियों को मारती थी, अब सिद्धार्थ को ढूंढ रही थी।
वो आत्मा उसके पास आई।
"तू बच सकता है... एक शर्त पर।"
"क्या?" सिद्धार्थ कांप उठा।
"कुर्सी पर बैठा कोई निर्दोष चाहिए। तेरा उद्धार उसी से होगा।"
अध्याय 9: मोक्ष?
सिद्धार्थ के आदमी आदित्य को जबरन कुर्सी पर बिठाने की कोशिश करते हैं, लेकिन कुर्सी शांत नहीं रहती।
कुर्सी तब तक किसी को स्वीकार नहीं करती जब तक वह स्वेच्छा से न बैठे।
आदित्य समझता है कि वह कुर्सी एक दरवाज़ा है... पाप और मोक्ष के बीच।
आख़िरकार वह खुद बैठने को तैयार होता है।
और जैसे ही वो बैठता है...
कुर्सी जल उठती है, एक चीख गूंजती है—सिद्धार्थ की।
अंतिम अध्याय: अगला शिकार?
सिद्धार्थ की आत्मा जला दी गई।
पर कुर्सी अभी भी म्यूज़ियम में है।
अब उस पर एक तख्ती लटकती है:
"Do not Sit. Unless you're truly innocent."
"बैठना मना है। जब तक तुम एकदम निर्दोष न हो।"
म्यूज़ियम में एक बच्चा खड़ा है, नन्हा, मासूम। वो कुर्सी को देखता है...
और मुस्कुरा कर पूछता है...
"मम्मी, क्या मैं इस पर बैठ सकता हूँ?"
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