नियो एस्ट्रो : रक्त का पहला श्राप | Neo Astro: The First Curse | वैंपायर और दानव की डरावनी कहानी
नियो एस्ट्रो : रक्त का पहला श्राप
भाग 1 : मृत्यु, प्रताड़ना और पुनर्जन्म
प्रस्तावना : रक्त में जन्मी सभ्यता
धरती पर जब सभ्यताओं की नींव अभी मिट्टी और पत्थर पर थी, तब इंसान दो ही नियम मानता था—
“बलवान जीतेगा, दुर्बल मिटेगा।”
ना कोई कानून था, ना कोई इंसाफ़।
लोहे का युग अभी दूर था। पत्थर की कुल्हाड़ियाँ और लकड़ी के भाले ही युद्ध के हथियार थे।
मगर इन औज़ारों के पीछे छिपा हुआ लालच और क्रूरता इंसान को जानवर से भी ज़्यादा भयानक बना देता था।
हर कबीले का अपना छोटा-सा गाँव होता।
झोपड़ियाँ मिट्टी, पत्तों और लकड़ी से बनी होतीं।
औरतें खेतों में काम करतीं, बच्चे नदी के किनारे खेलते।
लेकिन हर व्यक्ति जानता था कि कभी भी हमला हो सकता है।
रात के अंधेरे में कोई ताक़तवर कबीला आकर सब कुछ छीन लेगा।
और इस छीनने में सबसे ज़्यादा कीमत चुकानी पड़ती थी औरतों और बच्चियों को।
नियो एस्ट्रो का गाँव
नियो एस्ट्रो का जन्म एक छोटे से कबीले में हुआ।
उसका पिता एक शिकारी था और माँ खेतों में अनाज उगाती थी।
बहन उससे सात साल बड़ी थी, जिसकी मुस्कान पूरे गाँव को रोशन कर देती थी।
पाँच साल का नियो एस्ट्रो एक भोला-भाला बच्चा था।
उसके हाथों में लकड़ी की बनी छोटी तलवार रहती, जिससे वह अपने दोस्तों के साथ खेलता।
वह अक्सर बहन से कहता—
“एक दिन मैं योद्धा बनूँगा और सबको बचाऊँगा।”
मगर किस्मत की लिखावट किसी को बचाने नहीं, उसे ही नर्क में धकेलने वाली थी।
क़हर की रात
वह चाँदनी रात थी।
गाँव वाले सो चुके थे, बच्चे अपनी माँओं के पास थे।
अचानक दूर से घोड़ों की टापें गूँजने लगीं।
डमरुओं की भयानक आवाज़ आई।
लोग घबराकर उठ खड़े हुए।
हमला हो चुका था।
काले चेहरे वाले सैकड़ों योद्धा गाँव में घुस आए।
उनके हाथों में जलती मशालें और खून से रंगे भाले थे।
वे चीख रहे थे—
“सबको काट डालो! औरतों को पकड़ लो! बच्चों को बाँध दो!”
झोपड़ियाँ जलने लगीं।
लोग भागने लगे।
लेकिन कौन भाग पाता?
हर गली में खून की नदियाँ बहने लगीं।
खून और चीखों का समंदर
नियो एस्ट्रो ने अपनी आँखों से देखा—
उसके पिता भाले से लड़े, मगर उन्हें पकड़ लिया गया।
घोड़ों से बाँधकर घसीटा गया।
उनका शरीर बीच से फट गया, आंतें बाहर गिर गईं।
उसकी माँ को रस्सियों से बाँधा गया और जिंदा आग में झोंक दिया गया।
उसकी चीखें आसमान तक पहुँचीं।
और उसकी बहन…
उसे दस दरिंदे पकड़कर घसीट ले गए।
वह रोती रही, चिल्लाती रही, पर हवस की आँधी ने उसकी आत्मा तक तोड़ दी।
नियो एस्ट्रो का छोटा-सा दिल काँप उठा।
वह चिल्ला रहा था, मगर कोई उसकी आवाज़ नहीं सुन रहा था।
जब बहन की देह बेहोश होकर गिर गई, तो उन दरिंदों ने उसे वहीं छोड़ दिया।
कुछ देर बाद वह हमेशा के लिए शांत हो गई।
दास बना नियो एस्ट्रो
पाँच साल का बच्चा, जिसकी आँखों में अब आँसू नहीं बचे थे, उसे रस्सियों से बाँधकर घसीट लिया गया।
वह अब एक ग़ुलाम था।
कई सालों तक उसने हर रोज़ मौत देखी।
औरतें खून से सनी हुई मिलतीं।
बच्चों को भूखा-प्यासा बाँधकर रखा जाता।
जो कमज़ोर पड़ते, उन्हें मार दिया जाता।
लड़कियों को खाना पकाने और औरतों पर नज़र रखने के लिए ज़िंदा रखा जाता।
नियो एस्ट्रो का दिल पत्थर बनने लगा था।
हर रात वह आग की लपटों में जलती अपनी माँ को देखता, बहन की चीखें सुनता और पिता का टूटा हुआ शरीर याद करता।
भागने की कोशिश और यातना
चौदह साल का होते ही उसने फैसला लिया—
“या तो भागूँगा या मर जाऊँगा।”
रात को उसने रस्सी खोली और जंगल की ओर भागा।
लेकिन उसे पकड़ लिया गया।
फिर जो हुआ, वह इंसानियत के नाम पर सबसे बड़ा धब्बा था।
उसे बाँधा गया।
उसके शरीर पर लोहे की कीलें ठोंकी गईं।
जलती हुई लकड़ियों से उसकी त्वचा को दागा गया।
उसकी आँखों में राख और नमक झोंक दिया गया।
उसकी हड्डियाँ तोड़ी गईं।
जब वे दरिंदे ऊब गए, तो उसे लाश समझकर जंगल में फेंक आए।
उन्हें लगा कि वह अब कभी साँस नहीं ले पाएगा।
जंगल की दहशत
रात अंधेरी थी।
पेड़ों की शाखाओं से अजीब परछाइयाँ उतर रही थीं।
दूर से भेड़ियों की हुआँ-हुआँ सुनाई दे रही थी।
नियो एस्ट्रो की साँसें बहुत हल्की थीं।
उसकी आँखें आधी खुली थीं।
अचानक उसने सुना—
कुछ भारी आवाज़ें, जैसे कोई मरा हुआ शरीर ज़मीन पर घसीट रहा हो।
वह धीरे-धीरे सिर घुमाता है और देखता है—
काले धुएँ से बनी एक विशाल आकृति…
उसकी आँखें लाल अंगारों की तरह जल रही थीं।
वह लाशों की गर्दन पकड़कर खून चूस रहा था।
हर एक मृतक से वह लाल गाढ़ा तरल खींचकर पी जाता।
पहला सामना
वह प्राणी अचानक नियो एस्ट्रो की तरफ़ मुड़ा।
उसकी साँसें बर्फ़ जैसी ठंडी थीं।
वह झपट्टा मारते हुए उसके ऊपर आ गिरा।
उसके लंबे दाँत नियो एस्ट्रो की गर्दन में धँस गए।
चीख इतनी भयानक थी कि आस-पास के कबीले तक सुनाई दी।
जानवर पागलों की तरह रोने लगे।
पेड़ों से नीली और हरी अजीब रोशनी निकलने लगी।
मगर अजीब बात यह हुई—
वह दानव उसे पूरी तरह मार नहीं रहा था।
उसने अपना खून नियो एस्ट्रो की नसों में उतार दिया।
पुनर्जन्म
कुछ ही देर में नियो एस्ट्रो की आँखें बदल गईं।
वे आग की तरह जलने लगीं।
उसका शरीर काँपने लगा, फिर धीरे-धीरे मज़बूत हो गया।
उसके भीतर भूख उठी—खून की भूख।
उसकी नज़र सबसे पहले पड़ी अपनी बहन की सड़ी हुई लाश पर।
उसने उसकी गर्दन में दाँत गड़ा दिए।
गाढ़ा खून उसके मुँह में उतरा और उसकी ताक़त दोगुनी हो गई।
अब वह इंसान नहीं रहा।
वह पहला वैंपायर था।
आतंक की शुरुआत
अगली रात पास का पूरा कबीला ख़ामोश हो गया।
लोगों की लाशें बिना खून के मिलीं।
उनकी गर्दनें फटी हुई थीं।
गाँव वालों ने देखा—
अंधेरे में एक लंबा लड़का छाया की तरह चलता है।
उसकी आँखों में आग है, उसकी चीख हड्डियों तक को जमा देती है।
वह लोहे की ज़ंजीरों को तोड़ सकता है।
लोग फुसफुसाने लगे—
“यह नियो एस्ट्रो है… श्रापित दानव, रक्त का पहला शैतान।”
और इस तरह, 9वीं सदी की कहानियों में पहली बार दर्ज हुआ—
एक इंसान जो मौत से वापस आया और खून पीने वाला शैतान बन गया।
नियो एस्ट्रो : रक्त का पहला श्राप
(Neo Astro: The First Curse)
भाग 2 : दानव का रक्त और यूरोप का भय
अध्याय 1 : वह शैतान कौन था?
जिस दानव ने नियो एस्ट्रो को अपने खून से जन्म दिया, वह कोई साधारण प्राणी नहीं था।
वह था—अस्ट्रल डेमन "एरेवोस" (Erevos)।
एरेवोस हजारों साल पहले का शापित प्राणी था।
उसकी कहानी इंसानी सभ्यता से भी पुरानी थी।
कहा जाता है कि जब पृथ्वी पर पहली बार युद्ध हुए, जब इंसान पत्थर के हथियारों से एक-दूसरे की खोपड़ियाँ फोड़ते थे, तब उन युद्धों के मैदानों पर गिरे हुए खून से एक अंधेरी आत्मा पैदा हुई थी।
वह आत्मा थी एरेवोस—
एक ऐसा दानव जो इंसानी खून से पोषण लेता था।
वह इंसान को मारता नहीं था, बल्कि उसे "रक्त का पात्र" बना देता था।
उसके काटे हुए हर शिकार का खून उसका भोजन और उसकी आत्मा की ज्वाला था।
हजारों सालों तक एरेवोस जंगलों, गुफाओं और कब्रिस्तानों में भटकता रहा।
कभी किसी अकेले शिकारी का गला चीरता, कभी किसी मरती हुई लाश से रक्त खींच लेता।
उसका अस्तित्व छाया की तरह था—न उसे पूरी तरह देखा जा सकता था, न पूरी तरह मारा जा सकता था।
लेकिन नियो एस्ट्रो के साथ उसने कुछ अलग किया।
उसने केवल खून नहीं पिया…
उसने अपना शापित रक्त उसकी नसों में उतार दिया।
उस रात जब नियो की आत्मा बुझ रही थी, एरेवोस ने उसे अमर बना दिया।
अब नियो केवल इंसान नहीं रहा, बल्कि एरेवोस का वारिस बन चुका था।
उसकी आँखों में वही लाल आग, उसके दाँत वही राक्षसी दाँत, और उसकी आत्मा में वही अंधकार था।
अध्याय 2 : आतंक की पहली लहर
नियो एस्ट्रो ने पहले अपने कबीले का संहार किया।
जिन्होंने उसे यातना दी थी, एक-एक कर उनकी गर्दनें फाड़ दीं।
रातों-रात उनकी लाशें खेतों और झोपड़ियों में बिखरी पड़ी थीं।
लेकिन उसकी भूख बढ़ती गई।
उसने आस-पास के गाँवों पर हमला करना शुरू किया।
लोग कहते थे—
“रात को अगर कुत्ते भौंकना बंद कर दें और हवा अचानक ठंडी हो जाए, तो समझ लो कि नियो आ चुका है।”
बच्चे गायब होने लगे।
औरतें खेतों से लौटते समय लापता हो जातीं।
पुरुषों की लाशें सुबह मिलतीं—गर्दन फटी हुई, शरीर में एक बूँद खून नहीं।
धीरे-धीरे यह आतंक हंगरी और ट्रांसिल्वेनिया तक फैल गया।
पूरे-पूरे गाँव खाली हो गए।
लोग डर के मारे अपने घर छोड़कर पहाड़ों और जंगलों में भागने लगे।
अध्याय 3 : चर्च की पहली प्रतिक्रिया
9वीं सदी में ईसाई चर्च यूरोप में फैल चुका था।
हर गाँव में मठ (Monastery) और पादरी मौजूद थे।
जब यह खबर पहुँची कि किसी अंधेरे प्राणी ने लोगों का खून पीना शुरू कर दिया है, चर्च ने इसे दानविक प्रकोप माना।
पादरियों ने कहा—
“यह दानव का पहला पुत्र है। हमें इसे रोकना होगा, वरना पूरा यूरोप नरक बन जाएगा।”
चर्च ने अपने सबसे बहादुर योद्धाओं और भूत-प्रेत भगाने वाले पादरियों को इकट्ठा किया।
उन्होंने पवित्र क्रॉस, पवित्र जल (Holy Water), और लोहे के हथियारों से लैस होकर किले बनाए।
यह पहला मौका था जब एक्सॉर्सिज्म (Exorcism) और वैंपायर शिकार संगठित रूप से शुरू हुआ।
अध्याय 4 : एक्सॉर्सिज्म और असफलता
एक रात चर्च के योद्धाओं ने नियो को घेर लिया।
उसके सामने पादरी ने क्रॉस उठाकर पवित्र मंत्र पढ़े।
कुछ पल के लिए नियो चीखने लगा, उसके शरीर से धुआँ उठा।
लोगों को लगा कि वह कमजोर हो रहा है।
मगर अचानक उसकी आँखें आग की तरह जल उठीं।
उसने जंजीरों को तोड़ डाला और चार योद्धाओं का खून वहीं पी गया।
पादरी को उसने पकड़कर हवा में उछाल दिया—उसका शरीर पेड़ पर जाकर चिपक गया।
बाकी लोग जान बचाकर भागे।
चर्च ने उस दिन समझ लिया—
यह कोई साधारण आत्मा नहीं है।
यह दानव का रक्त लेकर आया है।
अध्याय 5 : यूरोप का भय
साल दर साल नियो का आतंक और फैलता गया।
कब्र खोदने पर लाशें सड़ी नहीं मिलती थीं।
उनके मुँह से खून टपकता था।
गाँव वाले कहने लगे—
“ये लोग मरकर भी ज़िंदा हैं। ये Strigoi हैं… ये Revenant हैं।”
नियो ने सिर्फ़ इंसानों को नहीं, बल्कि उनके विश्वास को भी तोड़ दिया।
रात को कोई दरवाज़ा बंद करने की हिम्मत नहीं करता, क्योंकि वह लकड़ी के दरवाज़े को ऐसे तोड़ देता जैसे वह घास की डंडी हो।
लोग अपने घरों के बाहर लहसुन और लोहे की छड़ें लगाने लगे, लेकिन उसका असर सिर्फ़ मामूली था।
पूरे ट्रांसिल्वेनिया में औरतें अपने बच्चों को सुलाते समय कहतीं—
“सो जा, वरना नियो आ जाएगा और तेरा खून पी जाएगा।”
अध्याय 6 : नियो और एरेवोस की मुलाकात
कई सालों बाद, एक रात जंगल की गुफा में नियो को फिर वही शैतान दिखाई दिया जिसने उसे काटा था।
एरेवोस।
वह छाया की तरह उसके सामने आया और बोला—
“अब तू मेरा वारिस है, नियो।
तेरा खून मेरा खून है।
तेरी भूख मेरी भूख है।
तू इंसानों को नहीं छोड़ेगा, तू उनकी आत्मा तक पी जाएगा।”
नियो ने पूछा—
“क्यों मैं? क्यों मुझे चुना गया?”
एरेवोस हँसा—
“क्योंकि तूने सब कुछ खोया है।
तूने अपने पिता को फटते देखा, माँ को जलते देखा, बहन को रौंदते देखा।
तेरे दिल में इंसानियत मर चुकी है।
तेरे जैसा पात्र और कोई नहीं था।”
उस रात नियो ने अपने भाग्य को स्वीकार कर लिया।
अब वह सिर्फ़ बदला नहीं ले रहा था—
वह पूरे इंसानी अस्तित्व के खिलाफ़ खड़ा हो गया था।
अध्याय 7 : पहला युद्ध
चर्च ने एक बड़ी सेना तैयार की।
हज़ार से ज्यादा योद्धा, पवित्र जल से भरे बैरल, और भारी लोहे के हथियार लेकर वे जंगलों में उतरे।
उन्होंने कहा—
“आज या तो हम जिएँगे या यह शैतान।”
रात को भयंकर युद्ध छिड़ा।
हवा में मंत्र गूँज रहे थे, तलवारें टकरा रही थीं, और हर तरफ़ खून बह रहा था।
नियो अकेला था… मगर उसका आतंक हज़ारों पर भारी पड़ा।
उसने सैनिकों के गले काटे, उनके खून से ज़मीन को लाल कर दिया।
कई योद्धाओं ने उसे भाले से छेदा, लेकिन उसका शरीर ज़ख्मों से तुरंत भर जाता।
आख़िरकार चर्च ने पूरी सेना खो दी।
मठों में सिर्फ़ विलाप रह गया।
अध्याय 8 : शाप का विस्तार
यूरोप भर में नियो की कहानियाँ फैल गईं।
लोग उसे “रक्त का पहला शैतान” कहते।
कब्रों से निकलते Revenant, रात को गाँव में घूमते Strigoi—सब उसी से जुड़ गए।
हर एक्सॉर्सिज्म का दस्तावेज़ यही कहता था—
“वे अजीब आवाज़ों में बोलते, खून उलटते और जंजीरों को तोड़ देते हैं।”
पादरी लिखते—
“यह सब नियो एस्ट्रो के श्राप से पैदा हुआ है। जब तक उसका रक्त जिंदा है, यह भय समाप्त नहीं होगा।”
उपसंहार
यही वह दौर था, जब यूरोप में पहली बार वैंपायर की किंवदंती शुरू हुई।
लोगों ने मान लिया कि मृत्यु अंत नहीं है।
कुछ लोग मरकर भी लौट आते हैं—
खून पीने वाले, आत्मा निगलने वाले राक्षस बनकर।
और इस किंवदंती की जड़ में सिर्फ़ एक नाम था—
नियो एस्ट्रो, रक्त का पहला श्राप।
दीपावली मदद हेतु
“नमस्कार दोस्तों,
सबको दीपावली की ढेरों शुभकामनाएँ। यह त्योहार खुशियों और रोशनी का प्रतीक है, लेकिन मैं आज आपसे अपने दिल की एक बहुत ही निजी और जरूरी बात साझा करना चाहता हूँ।
कुछ समय पहले मेरी ज़िंदगी में बहुत मुश्किलें आईं। रोज़मर्रा की छोटी-छोटी ज़रूरतें भी पूरी करना मुश्किल हो गया। अकेले संभालना बहुत कठिन हो गया, और कई बार लगा कि सब कुछ खत्म हो जाएगा।
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दिल से धन्यवाद!”
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