अघोरी का प्रतिशोध
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अघोरी का प्रतिशोध
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⚰️🌑 "अघोरी का प्रतिशोध" 🌑⚰️
सात अघोरी… जो मुर्दों का मांस खाते थे, खून पीते थे और अमरता की साधना करते थे।
लेकिन एक रात उनका रिवाज़ टूट गया… और जन्म हुई 🔥 खूनी आत्मा 🔥
जो अब हर इंसान की रूह में बदले की आग बनकर उतरती है।
---अघोरी का प्रतिशोध
💀👁️🗨️
यह कहानी सिर्फ़ पढ़ी या देखी नहीं जाती…
यह तुम्हारी नसों में खून बनकर दौड़ जाती है। 🩸
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---अघोरी का प्रतिशोध
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अघोरी का प्रतिशोध
भाग – 1
उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर से लगभग 40 किलोमीटर दूर, गंगा के किनारे बसे कैलाशपुर गाँव को लोग एक रहस्यमयी जगह मानते थे। गाँव के चारों ओर घना जंगल फैला था, जिसमें जाने की हिम्मत कोई नहीं करता था। कहते थे कि उस जंगल के भीतर एक पुराना, जर्जर श्मशान है, जहाँ दिन-रात अघोरी साधु रहते हैं। लोग मानते थे कि वे अघोरी मृत इंसानों को खा जाते हैं, उनका खून पीते हैं और काले अनुष्ठान करते हैं।
गाँव के बुजुर्गों का कहना था—
"जो भी इंसान उस जंगल में गया है, वह वापस लौटा नहीं। अगर लौटा भी तो कुछ ही दिनों में दर्दनाक मौत मरी।"
इसी गाँव में रहती थी श्रुति मिश्रा, 20 साल की एक मासूम लड़की। कॉलेज में पढ़ती थी और अक्सर अपने बॉयफ्रेंड रोहन वर्मा से जंगल के किनारे बनी पुरानी हवेली के पास मिला करती थी। रोहन एक साहसी और जिद्दी लड़का था, जिसे गाँव वालों की कहानियाँ सिर्फ अंधविश्वास लगती थीं।
वो रात...
28 अगस्त 2021 की रात थी। आसमान में काले बादल छाए थे, और हवाओं में अजीब सिहरन थी। श्रुति अपने घर से चुपके-चुपके निकली और रोहन से मिलने जंगल की तरफ चली। दोनों पहले भी कई बार वहाँ मिल चुके थे, लेकिन इस रात में अजीब सन्नाटा था। न पत्तों की सरसराहट, न झींगुरों की आवाज़... सिर्फ एक घुटन भरी खामोशी।
जब श्रुति जंगल के अंदर पहुँची, तो उसने देखा—कहीं दूर आग की हल्की लपटें झिलमिला रही थीं। उसने सोचा कि शायद यह रोहन का दिया हुआ इशारा होगा। लेकिन जब वह पास पहुँची, तो उसकी रूह काँप उठी।
अघोरी का भयानक दृश्य
आग के चारों ओर सात अघोरी बैठे थे। उनके शरीर पर राख पुती थी, आँखें लाल सुर्ख जल रही थीं। उनके सामने एक ताज़ा मरा हुआ इंसान पड़ा था। अघोरी उस शव के मांस को हाथों से नोच-नोच कर खा रहे थे। कोई उसकी हड्डियाँ चबा रहा था, कोई उसकी नसों से खून चूस रहा था।
उनकी खौफनाक हँसी जंगल में गूंज रही थी। हवा में सड़े मांस और खून की गंध भर चुकी थी।
श्रुति ने यह दृश्य देखा तो उसके मुँह से अनायास ही एक भयावह चीख निकल गई।
अघोरियों के कान जैसे उस चीख से चीर गए हों। उनकी आँखें तुरंत उसकी ओर घूमीं।
"कौन है वहाँ?" – एक अघोरी गरजा।
श्रुति बुरी तरह घबरा गई और जंगल के रास्तों से भागने लगी। सातों अघोरी उसके पीछे दौड़े। उनके पैरों की धमक और गरजती आवाज़ें रात की खामोशी को चीर रही थीं।
मौत की शुरुआत
भागते-भागते श्रुति ने पीछे देखा—उनमें से एक अघोरी का पाँव पेड़ की जड़ों में फँस गया और वह जोर से गिर पड़ा। उसके शरीर पर जलती हुई लकड़ी का ढेर आ गिरा। उसकी खाल जलने लगी, और दर्दनाक चीखों के बीच उसकी भयानक मौत हो गई।
बाकी अघोरी रुक गए। उनकी आँखें श्रुति पर टिकी थीं। उनमें से सबसे बुज़ुर्ग अघोरी ने चिल्लाकर कहा—
"हमारा अनुष्ठान टूट गया है... इस लड़की के कारण! अब इस पर ही श्राप होगा। मरने वाले की आत्मा इसे चैन से जीने नहीं देगी। इसका परिवार, इसके दोस्त... सब इसका दर्द झेलेंगे।"
श्रुति किसी तरह भागकर अपने घर पहुँच गई। उसने सबको बताया, पर किसी ने यकीन नहीं किया।
श्राप की शुरुआत
अगले ही दिन से अजीब घटनाएँ होने लगीं।
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रात को श्रुति अपने सपनों में वही दृश्य देखती—अघोरी मांस खा रहे हैं, खून पी रहे हैं, और उसकी ओर बढ़ रहे हैं।
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सपनों में जब भी कोई मरता, सुबह वही घटना सच हो जाती।
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पहले उसके घर के कुत्ते की गर्दन मुड़ी हुई मिली।
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फिर उसके पिता की अचानक दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई, जबकि वे पूरी तरह स्वस्थ थे।
श्रुति का मानसिक संतुलन बिगड़ने लगा।
खून से भरे सपने
एक रात श्रुति ने सपना देखा कि उसकी माँ पर वही मरा हुआ अघोरी हमला कर रहा है, उसकी आँतें निकालकर खा रहा है। श्रुति नींद से चीखते हुए उठी। लेकिन जैसे ही उसने कमरे का दरवाज़ा खोला, सामने का दृश्य उसकी जान निकाल देने वाला था।
उसकी माँ का शव फर्श पर पड़ा था, खून में लथपथ। उनकी आँखें बाहर निकली हुई थीं, और पेट चाकू से फटा था।
श्रुति वहीं बेसुध होकर गिर गई।
खौफ़ का दायरा बढ़ता गया
श्रुति के दोस्त जो उसे समझाने आते, वे भी अजीब हालात में मरने लगे।
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एक की गर्दन घर की छत से लटकती मिली।
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दूसरे का शव नदी से आधा खाया हुआ निकला।
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तीसरे को नींद में ही जला हुआ पाया गया।
श्रुति हर बार कहती कि उसने यह सब पहले सपने में देखा था।
रोहन का वादा
अब सिर्फ रोहन बचा था, जो किसी भी हालत में श्रुति को बचाना चाहता था। उसने कसम खाई—
"चाहे मुझे मरना पड़े, मैं तुझे इस श्राप से निकालकर रहूँगा।"
लेकिन उस रात, जब दोनों जंगल के बाहर मिले, अचानक हवा में वही खौफनाक हँसी गूँजी। पेड़ों के बीच से वही अघोरी की आत्मा निकलकर उनके सामने खड़ी हो गई—काली परछाई, लाल आँखें, और जलते हुए शरीर की गंध।
उसने गरजते हुए कहा—
"तुम्हारी मौत से ही हमारा अधूरा अनुष्ठान पूरा होगा।"
श्रुति और रोहन काँप उठे।
👉 भाग – 1 यहीं समाप्त होता है।
भाग – 2 में कहानी और खौफनाक मोड़ लेगी, जहाँ अघोरी की आत्मा और बाकी ग्रुप श्रुति को हर हाल में पकड़ने आएँगे। रोहन श्रुति को बचाने के लिए तंत्र-मंत्र और मृत्यु से भी टकराएगा।
अघोरी का प्रतिशोध
भाग – 2
श्रुति और रोहन उस रात जंगल के बाहर खड़े थे। उनके सामने खड़ा था वही अघोरी, जिसकी मौत श्रुति की वजह से हुई थी। उसका शरीर जला हुआ, त्वचा जगह-जगह से उखड़ी हुई, और आँखें अंगारों की तरह लाल चमक रही थीं। उसके मुँह से खून की बूंदें टपक रही थीं।
"तूने मेरा अनुष्ठान तोड़ा है… अब तेरे खून से ही हमारी अधूरी साधना पूरी होगी।" – उसकी आवाज़ इतनी गहरी और भयावह थी कि आसपास के पेड़ भी कांपने लगे।
श्रुति ने रोहन का हाथ कसकर पकड़ लिया।
"रोहन… हमें भागना होगा।"
लेकिन रोहन ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा –
"नहीं, श्रुति। अब भागने से कुछ नहीं होगा। अगर हमें जिंदा रहना है, तो इसका सामना करना ही होगा।"
आत्मा का पहला हमला
अचानक वह अघोरी आत्मा ज़मीन से ऊपर उठी और हवा में फैलकर चारों ओर छा गई। चारों दिशाओं से डरावनी चीखें गूँजने लगीं। रोहन ने श्रुति को खींचकर भागने की कोशिश की, लेकिन चारों ओर अंधेरा छा गया।
रोहन ने जैसे ही मोबाइल का टॉर्च ऑन किया, सामने का नज़ारा उसकी रूह कंपा देने वाला था।
श्रुति के सारे मरे हुए दोस्त उसके सामने खड़े थे – अधजले, खून से लथपथ, टूटी हुई गर्दनों और बाहर निकली आँतों के साथ। उनकी आँखें खाली थीं, लेकिन होंठ फटे हुए मुस्कुरा रहे थे।
"तू हमारी वजह से मरे, अब हमें अपने साथ ले चल…" – वे सब एक साथ बोले।
श्रुति ज़ोर से चीखी और बेहोश होकर ज़मीन पर गिर गई।
बनारस का तांत्रिक
रोहन किसी तरह उसे लेकर गाँव पहुँचा। वहाँ जाकर उसने सबसे बुज़ुर्ग आदमी, पंडित शिवदास, से मदद मांगी। पंडित ने सब सुनकर गहरी साँस ली और बोला –
"ये अघोरी साधना बहुत पुरानी है। वो सात अघोरी कोई आम साधु नहीं थे। उन्होंने मृत्यु पर विजय पाने की साधना शुरू की थी। लेकिन जब उनमें से एक मर गया और अनुष्ठान टूट गया, तो उसकी आत्मा भटक गई। अब वो आत्मा श्रुति के पीछे है, क्योंकि उसी ने अनुष्ठान रोका था।"
रोहन ने गुस्से में कहा –
"तो उपाय बताइए पंडित जी! हम इसे ऐसे मरने नहीं देंगे।"
पंडित ने कहा –
"केवल उसी जगह पर जाकर, जहाँ वे अघोरी अपना रिवाज़ करते थे, तू इसे रोक सकता है। लेकिन याद रख, वहाँ तेरे सामने मौत के अलावा कुछ नहीं होगा।"
श्मशान की ओर यात्रा
अगली रात, रोहन और श्रुति उस जंगल में वापस गए। उनके साथ पंडित शिवदास भी था। रास्ते में ठंडी हवा चल रही थी, लेकिन वो हवा साधारण नहीं थी… उसमें सड़ते मांस की गंध थी।
जब वे श्मशान पहुँचे, तो सामने सात अघोरी की राख से बना गोल घेरेदार चिन्ह दिखाई दिया। उस पर खून से मंत्र लिखे थे। जैसे ही श्रुति ने कदम रखा, चारों तरफ से आग की लपटें उठीं और बाकी छह अघोरी भी वहाँ आ खड़े हुए।
उनके चेहरे पर गुस्सा था।
"तुमने हमारे भाई की मौत का बदला नहीं चुकाया… अब समय आ गया है।"
रिवाज़ का पुनर्जन्म
अघोरी आत्माओं ने मिलकर श्रुति को उस घेरे के बीच खड़ा कर दिया। उसके हाथ-पाँव पत्थरों की तरह जकड़ गए। पंडित मंत्र पढ़ने लगा, लेकिन तभी उसके गले से खून की उल्टी निकल गई और वह ज़मीन पर गिर पड़ा – मरा हुआ।
अब रोहन अकेला बचा था। उसने श्रुति को बचाने की कोशिश की, लेकिन एक अघोरी ने उसे हवा में उछालकर ज़मीन पर पटक दिया। उसकी हड्डियाँ टूटने लगीं, खून मुँह से बह निकला।
फिर भी रोहन उठा और चाकू निकालकर अघोरी के पैर में घोंप दिया। आत्मा चीख पड़ी, लेकिन बाकी अघोरी और भी गुस्से में आ गए।
डरावना ट्विस्ट
अचानक, श्रुति की आँखें सफेद हो गईं। उसका शरीर कांपने लगा और उसके मुँह से वही मरे हुए अघोरी की आवाज़ निकली –
"अब मैं इसी के शरीर में रहूँगा। यही मेरी साधना का नया वास होगा।"
रोहन यह देखकर काँप गया। अब श्रुति खुद अघोरी आत्मा के कब्ज़े में थी। उसका शरीर काँपते हुए खड़ा हुआ और वह रोहन की ओर बढ़ी।
"मुझे मार दे, रोहन… अभी मार दे, वरना मैं हमेशा के लिए खो जाऊँगी!" – श्रुति की असली आवाज़ उसके मुँह से निकली, लेकिन तुरंत उसके चेहरे पर अघोरी की खौफनाक हँसी गूँज उठी।
अंतिम युद्ध
रोहन रोया, चिल्लाया, लेकिन अंत में उसने काँपते हाथों से वही चाकू श्रुति के दिल में भोंक दिया।
श्रुति की आँखों से आँसू बहते हुए उसके होंठों पर आखिरी मुस्कान आई –
"धन्यवाद…"
फिर उसका शरीर ज़मीन पर गिर पड़ा।
अघोरी आत्मा जोर से चीखी और धुएँ में बदलकर गायब हो गई। जंगल में फिर सन्नाटा छा गया।
पर क्या सब खत्म हुआ?
रोहन श्रुति के शव को सीने से लगाकर रो रहा था। तभी अचानक उसके कान में वही आवाज़ आई –
"अनुष्ठान अभी पूरा नहीं हुआ, रोहन… अब तेरी बारी है।"
और अगले ही पल रोहन की आँखें भी लाल चमक उठीं।
🔥 अंत...? या शुरुआत?
कहानी यहाँ खत्म होती है, लेकिन श्रुति की मौत के बाद रोहन का शरीर धीरे-धीरे उसी अघोरी आत्मा का नया निवास बन गया। गाँव वाले कहते हैं कि आज भी कैलाशपुर के जंगल में रात को एक जवान लड़के की परछाई दिखती है, जिसकी आँखें लाल होती हैं और हाथों में खून टपकता रहता है।
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