हड़िया भूता – रक्त की प्यास
📖 "हड़िया भूता – रक्त की प्यास"
झारखंड के घने जंगलों में एक भयानक आत्मा अब भी सांस ले रही है… एक आत्मा जो हड़िया (देशी शराब) में छुपकर शरीर में घुसती है… और फिर अपने शिकार को पागलपन, खून की प्यास और नरसंहार की तरफ धकेल देती है।
---हड़िया भूता – रक्त की प्यास
1912 की सर्द रातें, साल के सूखे पेड़, और एक बर्बाद हो चुका लकड़हारा… बुलाकी मुण्डा। जब उसने हर शाम शराब पीना शुरू किया, तब किसी को अंदाज़ा नहीं था कि वो शराब नहीं, "हड़िया भूता" को पी रहा है – एक प्राचीन राजा की भूखी आत्मा जो बलि, रक्त और आत्माओं की सौदेबाज़ी करती थी।
---हड़िया भूता – रक्त की प्यास
जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, गाँव में लाशों की कतार लगती जाती है। जानवरों की चित्कार, बच्चों की चीखें और उस जंगल की मिट्टी में रिसता हुआ खून इस बात का सबूत है कि यह आत्मा आज भी ज़िंदा है।
---हड़िया भूता – रक्त की प्यास
एक भयावह रहस्य, खौफनाक आत्मा की उत्पत्ति, आत्मा-बांधने की प्राचीन विधि, और साल वृक्ष के नीचे की आखिरी लड़ाई…
यह सिर्फ कहानी नहीं है — यह शापित इतिहास है, जो बार-बार खुद को दोहराता है।
---हड़िया भूता – रक्त की प्यास
💀 क्या आप भी हड़िया पीते हो? तो हो सकता है अगला शिकार आप ही हों…
---हड़िया भूता – रक्त की प्यास
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मुंडा जनजाति – "हड़िया भूता"
कहानी शीर्षक: हड़िया भूता: रक्त की प्यास
📜 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और ग्रंथ संदर्भ:
हड़िया भूता का उल्लेख "जनजातीय लोकविश्वास एवं आत्मिक परंपराएँ – मुंडा संस्कृति" नामक पांडुलिपि में मिलता है, जिसे डॉ. रामप्रसाद लोहरा ने वर्ष 1889 में रांची ज़िले के कोलेबिरा क्षेत्र के मुंडा समुदाय से एकत्रित करके लिपिबद्ध किया था। इस दस्तावेज़ में मुंडाओं की आत्माओं की प्रकृति, बुरे भूतों की श्रेणियाँ, और "हड़िया भूता" के विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसे बिहार लोक-साहित्य संग्रहालय, पटना में संरक्षित किया गया है।
भाग 1: छाया की पहली चुस्की
स्थान: झारखंड का छोटा सा गाँव – रखमाटी
वर्ष: 1912
गाँव के किनारे एक टूटा-फूटा कच्चा घर था, जिसमें बुलाकी मुंडा अपनी पत्नी सोना देवी और दो बच्चों के साथ रहता था। वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शाम को थककर “हड़िया” पीता – वह देशी चावल की शराब, जो मुंडाओं की परंपरा का हिस्सा थी।
पर कुछ महीनों से, जब भी बुलाकी शराब पीता, उसकी आंखें उलटने लगतीं, शरीर में कंपन होता, और वह रात को घर से बाहर निकलकर जंगल की ओर चला जाता… और सुबह लौटता – हाथों में खून, कपड़ों पर कीचड़, और चेहरे पर ऐसी मुस्कान जो किसी राक्षस की हो।
गाँव में जानवर कटे हुए मिलते – मुरगियाँ, बकरियाँ… फिर एक दिन चंपा नाम की लड़की जंगल में मरी मिली – शरीर पूरी तरह निचुड़ा हुआ, जैसे किसी ने उसके शरीर से खून चूस लिया हो। और उसके पास पड़ी थी – हड़िया से भरी एक मिट्टी की हांडी।
गाँव के बुज़ुर्ग ओझा - सुगन लोहरा ने चेतावनी दी –
“यह ‘हड़िया भूता’ है – एक भूखा आत्मा जो शराब के माध्यम से शरीर में घुसता है… यह पहले शरीर को वश में करता है, फिर उसे प्यासा बना देता है – खून की प्यास से।”
रहस्य गहराता है...
सोना देवी ने एक रात अपने पति के पीछे-पीछे जंगल का पीछा किया – उसने देखा कि बुलाकी एक पुराने साल पेड़ के नीचे जाकर हड़िया की हांडी रखता है और जमीन पर कुछ बड़बड़ाता है – तभी उसका शरीर कांपने लगता है, आंखें काली हो जाती हैं और वह ज़ोर से चिल्लाता है –
“मदिरा का जीवन दो, और मैं ताजगी दूँ… रक्त की ताजगी…”
वहीं पास ही एक कब्रनुमा गड्ढा था – जिसमें कई कंकाल दिख रहे थे…
भाग 2: हड़िया भूता का रहस्योद्घाटन
स्थान: रखमाटी का वही जंगल – साल वृक्ष के नीचे
वर्ष: 1912 के अंत में
ओझा सुगन लोहरा ने तय किया कि वह इस आत्मा का नाश करेगा। उसने बताया कि यह आत्मा किसी राजा लुबेन मुंडा की है, जो 1700 के दशक में अपने आदमियों को हड़िया पिलाकर बलि चढ़वाता था – हड़िया में भांग मिलाता और फिर उन्हें साल वृक्ष के नीचे जिंदा दफना देता। जब अंग्रेज आए, उन्होंने राजा को मार दिया, पर उसकी आत्मा उसी हड़िया हांडी में कैद हो गई, और अब हर उस व्यक्ति को अपना माध्यम बनाती है जो लालच में आकर अधिक हड़िया पीता है।
खूनी मंजर
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गाँव में पाँच और मौतें होती हैं – सभी शराबियों की।
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सभी की आँखें फटी हुई, चेहरे पर डर, और जिह्वा बाहर निकली – जैसे उन्होंने कुछ देखा हो जो वर्णन से परे था।
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एक रात बुलाकी ने अपने दोनों बच्चों को मारने की कोशिश की – लेकिन सोना देवी ने समय रहते ओझा को बुला लिया।
अंतिम लड़ाई – साल वृक्ष के नीचे
सुगन ओझा ने आत्मा को पकड़ने के लिए “भूत-बांध” प्रक्रिया की शुरुआत की – जिसमें 7 प्रकार के चावल, 3 बलि (एक काला मुर्गा, एक बकरा, एक कुत्ता) और असुर मंत्र का उच्चारण होता है।
जब बुलाकी उस रात साल पेड़ के नीचे पहुंचा, तो आत्मा ने उसका शरीर पूरी तरह से वश में कर लिया। वो अब बुलाकी नहीं, राजा लुबेन बन गया – आवाज़ भारी, शरीर में आग जैसी लाल रेखाएं, और आंखें लाल अंगारे जैसी।
ओझा ने मंत्र फूंका – और वह हड़िया हांडी अचानक जलने लगी। आत्मा चिल्लाई –
“मुझे रक्त चाहिए… मुझे मेरी बलि वापस दो…”
साल पेड़ से खून टपकने लगा… मिट्टी हिलने लगी… और फिर सब कुछ शांत हो गया।
बुलाकी बेहोश था… जब वो उठा, उसकी आँखों में होश था – पर मनोविज्ञान के अनुसार, उसका मानसिक संतुलन टूट चुका था। उसे जीवन भर के लिए पागलखाने भेज दिया गया।
📚 निष्कर्ष और प्रतीकात्मकता
हड़िया भूता सिर्फ एक आत्मा नहीं, लालच, नशे और पुरानी रीतियों का दुष्चक्र है, जो आधुनिक समाज को भी चेतावनी देता है।
📌 विशेष तथ्य:
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ग्रंथ: जनजातीय लोकविश्वास एवं आत्मिक परंपराएँ – मुंडा संस्कृति
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लेखक: डॉ. रामप्रसाद लोहरा
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संग्रहित: बिहार लोक-साहित्य संग्रहालय, पटना
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वर्ष: 1889
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स्थान-आधारित कथा क्षेत्र: कोलेबिरा, रांची – झारखंड
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