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मंगलवार, 11 मार्च 2025

होलिका का प्रेत होली स्पेशल

 **होलिका का प्रेत**  

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राजा हिरण्यकश्यप के राज्य में एक बार फिर होली का त्योहार आया था। लोग खुशी-खुशी रंगों से सराबोर हो रहे थे, लेकिन गाँव के एक कोने में स्थित पुराने जंगल में एक अजीब सी सन्नाटा छाया हुआ था। यह वही जंगल था जहाँ सदियों पहले होलिका ने प्रह्लाद को जलाने की कोशिश की थी।  


गाँव के लोग इस जंगल से दूर रहते थे, क्योंकि उनका मानना था कि होलिका की आत्मा अभी भी वहाँ भटकती है। लेकिन कुछ नौजवानों ने इसकी परवाह नहीं की। होली की रात को उन्होंने शरारत के मूड में जंगल में जाने का फैसला किया।  


वे पाँच दोस्त थे—राहुल, प्रिया, अंकित, सोनाली और विजय। उन्होंने जंगल के बीचोंबीच एक बड़ी सी चटाई बिछाई और होलिका दहन के लिए लकड़ियाँ इकट्ठा कीं। आग जलते ही उन्होंने गाने गाने और नाचने शुरू कर दिए। लेकिन तभी अचानक हवा का एक ठंडा झोंका आया, और आग की लपटें बुझ गईं।  


"क्या हुआ?" प्रिया ने डरते हुए पूछा।  


"शायद हवा चल रही है," राहुल ने कहा, लेकिन उसकी आवाज़ काँप रही थी।  


तभी उन्हें पीछे से एक हल्की सी हँसी सुनाई दी। वे सब मुड़े, लेकिन वहाँ कोई नहीं था।  


"चलो यहाँ से चलते हैं," सोनाली ने कहा, उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था।  


लेकिन जैसे ही वे जाने लगे, उन्हें एक और आवाज़ सुनाई दी। यह एक महिला की आवाज़ थी, जो धीरे-धीरे गा रही थी—  

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"प्रह्लाद... प्रह्लाद... तुम कहाँ हो?"  


वे सब जमे के जमे रह गए। अंकित ने टॉर्च जलाई और उसने देखा कि एक महिला की छाया पेड़ के पीछे से झाँक रही है। वह छाया धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ने लगी।  


"भागो!" विजय चिल्लाया।  


वे सब जंगल से भागने लगे, लेकिन जैसे ही वे जंगल के किनारे पर पहुँचे, उन्हें लगा कि वे वहीं के वहीं खड़े हैं। जंगल का रास्ता बदल गया था, और वे एक ही जगह पर घूम रहे थे।  


तभी उन्होंने देखा कि होलिका की आत्मा उनके सामने खड़ी है। उसका चेहरा जलता हुआ था, और उसकी आँखों से आग की लपटें निकल रही थीं।  


"तुम सबने मेरी शांति भंग की है," होलिका की आवाज़ गूँजी। "अब तुम्हें मेरे साथ रहना होगा।"  


राहुल और उसके दोस्त चिल्लाने लगे, लेकिन उनकी आवाज़ किसी तक नहीं पहुँची। होलिका की आत्मा ने उन्हें घेर लिया, और वे एक-एक करके गायब होने लगे।  


अगली सुबह, गाँव वालों ने जंगल में जाकर देखा तो वहाँ सिर्फ़ खाली चटाई और बुझी हुई आग के अवशेष थे। राहुल और उसके दोस्तों का कोई अता-पता नहीं था।  


कहा जाता है कि होलिका की आत्मा अभी भी उस जंगल में भटकती है, और जो भी उसकी शांति भंग करता है, वह उसका शिकार बन जाता है।  

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तो अगली बार जब होली का त्योहार आए, तो याद रखना—कुछ कहानियाँ सिर्फ़ कहानियाँ नहीं होतीं।  

💀 मैं कहानियाँ नहीं लिखता… मैं डर को शब्दों में ढालता हूँ।  

जो मेरी कहानियाँ पढ़ता है, कभी न कभी उसका सामना डर से जरूर होता है।  

सोच लो, अगली कहानी आपके बारे में भी हो सकती है।

**समाप्त**

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